डरता हूं
डरता हूं
कुछ पाने से पहले ही खोने से डरता हूं
हां मैं डरता हूं
बरसों रोया चीखा हूं अंधियारी काली रातों में
वो दामन सूखा नही अभी कैसे आ जाऊं बातों में
अब तो मैं शाम के नाम से ही थर थर थर कांपा करता हूं
सच कहता हूं हां डरता हूं
जिस पथ ने पग पग छला मुझे
धोखे पर धोखा मिला मुझे
उस पर कैसे विश्वास करूं
कैसे वो ही फिर आस करूं
फिर से ठग लेगा कोई मुझे
बस ये ही सोचा करता हूं
सच कहता हूं हां डरता हूं