ठोकरों ने गिराया ऐसा, कि चलना सीखा दिया।
ज़िन्दगी ने राहों को हीं, मंज़िल बना दिया,
ठोकरों ने गिराया ऐसा, कि चलना सीखा दिया।
हवाओं ने पतझड़ में, साजिशों का सहारा लिया,
जुड़े थे कभी शाख़ से, ज़मीं ने बुला लिया।
आँधियों ने ज़मीं को भी, अपना ना बनने दिया,
घर ढूंढने की आस में, बेघर बना दिया।
सूरज की तपिश ने, इम्तिहान ऐसा लिया,
जलते कोयलों ने भी, हँसकर सर को झुका लिया।
बाऱिशों ने छुआ ऐसे की, साहिल से जुदा किया,
चले एक बूँद बन नदियों संग, उसने समंदर किया।
आसमाँ ने मेरे चाँद को, रातों से अगवा किया,
गर्दिशों में मेरे अस्तित्व को, तारों ने रौशन किया।
कोहरे की ओट में, सुबहों ने सपनों को चुरा लिया,
ओस की बूँद ने पलकों पर, नए रंगों को चढ़ा दिया।
धनी व्यक्तित्व के थे, हर कारवाँ ने शामिल किया,
पर सोच की स्याही ने, सेहरा में भी तन्हा किया।
नक़ाब हमने भी चेहरे पे, ऐसा लगा लिया,
मुस्कराहट को ज़िंदगी का, फ़लसफ़ा बना दिया।