ठिठुरा चाँद
ठिठुरा ठिठुरा रहता चाँद
जब शीत लहर चलती है
प्रिया चाँदनी साथ रहती
हर पल साथ निभाया करती है
अम्बर का है विस्तार विस्तृत
देख चाँद होता है हतप्रभ
कभी इस छोर कभी उस छोर
चाँदनी पांव पसारा करती है
माणिक जैसे शोभित तारे
ज्यों आसमानी चादर में बूँटे
चाँद छिपा बादल की ओट
अधीर चाँदनी ढूंढ़ा करती है
नीलवर्णी होता है जब नभ
दिग दिगन्त हो जाते है शम
पूर्णिमा का चाँद होता गोल
चाँदनी यौवन बिखेरा करती है
आसमान का सफर तय कर
रातरानी से मधु गुफ्तगू कर
रश्मिरथी को आता देख कर
चाँदनी चाँद संग चला करती है