टेढ़े संग मुलाकात
शिल्प रहित कुछ बन्ध
टेढ़े मेढे यार की टेडी टेढ़ी मैड़ी बात।
मैं जानूँ क्या री सखी,क्या मेरी ओकात।
टेढ़ो सो मेरो सखा ,बाँके वाको नाम।
बिन बाँके बन बावरी, डोलूँ सुबह शाम।
बाँके को फुरसत कहाँ ,का बतलाऊँ तोहि।
सारी दुनियाँ में फँसो , कब देखे फिर मोहि।
वाकी मीठी याद भी,हर पल देती चैन।
बह जावे यह याद भी,गर बरसत जो नैन।
सो नयना कर बंद मैं ,पड़ी रहूँ दिन रात।।
कहु दिन तो बाँके संग ,होवेगी मुलाकात।
कलम घिसाई