टेढ़ा मेढ़ा विकास
इलाके मे,
जल और कचरे
के निकास के लिए
जब नालियाँ सड़क
के दोनों ओर चलने लगी,
तो कुछ सीधे साधे
घरों के बगल से
वो भी बिल्कुल सीधी
निकली।
अपनी ओर आता देख
कुछ घरों ने खुद ही
दो चार कदम पीछे खींच
लिए।
पर अब भी इक्का दुक्का
जगहों पर कुछ
उदंड मकानों
ने सड़कों पर डेरा डाल
रखा था।
नालियाँ कुछ दिन
उन मकानों को तकती रही।
फिर एक दिन,
दो चार को पीछे धकेलकर तो वो सीधी
निकली।
पर बाकियों के सामने
वो खुद को लचीला कर
खिसियाती हुई निकली।
हम इस टेढ़े मेढ़े
विकास से विस्मित तो थे।
पर नई नालियाँ
भी मजबूर थीं।
पुराने कुछ मकानों की
नींव काफी गहरी थी।
अब उन मकानों को
ये आते जाते
पहचानने लगी थी।