टेसू के वो फूल कविताएं बन गये ….
“टेसू के वो फूल कविताएं बन गये माँ और वो मेरे पन्नों पर इतने खिले कि , भर गईं अनगिनत डायरियां“….
अब भी छाप है डायरी के पन्नों पर टेसू के फूलों की , कितने पसंद थे आपको टेसू के फूल ,,, मुझे याद है अब भी टेसू के फूलों से लदी टहनियां लेकर आप मेरे पास आई थी , ” ले बचुआ इन्हें डायरी में रख ले “,,, और इतने सारे फूल डायरी में रख दिये कि डायरी फिर बंद ही नहीं हो पाई , और ना ही कलम थमी …..
मुझे याद नहीं है कि कब और कैसे वो फूल डायरी से हट गये लेकिन उनकी छाप अब भी है , कोई नहीं मिटा सकता उन्हें डायरी के पन्नों से , जैसे मन पर आपकी छाप टेसू के वो फूल कविताएं बन गये माँ और वो मेरे पन्नों पर इतने खिले कि , भर गईं अनगिनत डायरियां आपके रखे वो टेसू के निशान महक रहे हैँ किसी सबसे सुगन्धित पुष्प से भी ज्यादा* ,,,, बिताना चाहती हूँ वक़्त किसी टेसू से लदे वृक्षों की बगिया में , हो जाऊँ खुद भी टेसू के फूल सी किसी तारीफ , जीत या प्रतिस्पर्धा से परे , खुद में खुद ही खिलते हुए ,,’ एक दिन टेसू का जरूर आता है ,,,,
क्षमा ऊर्मिला