टूट गयी वो उम्मीदें
टूटा गयी वो उम्मीदें,जो तुम से थी कभी।
रह गये टूटे ख्वाब आंचल में मेरे सभी।
कितना मुश्किल है ,टूटी उम्मीदों को सहेजना
जैसे एक पत्थर मार,सागर को उड़ेलना।
जानते बूझते भी हम ,पालते झूठी उम्मीदें
जैसे पैसे दिए बिना ,मिले झूठी रसीदें ।
बात बात पर खाते हैं ,हमअपनो से धोखा
यकीन हम लोग रखे, क्यों रिश्तों पर चोखा ।
दूर तक साथ निभाने की कसमें सब तेरी
अंधा यकीं उन पर कर बैठना, गलती मेरी।
सुरिंदर कौर