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25 Apr 2017 · 1 min read

टूट कर शाख से गिरा कैसे

बात दिल की न कर हज़ारों से
ये जहाँ है भरी दिले बीमारों से

चाह गुल की रही सदा लेकिन
दिल लगाना पड़ा है खारों से

टूट कर शाख से गिरा कैसे
पूछ ले जा रहे बहारों से

हस्र क्या हो गया मेरा देखो
हाल सूना रहा दीवारों से

लुट गया हो जहाँ सनम जिसका
लुत्फ़ ले क्या हसीं नज़ारों से

डूब कर इश्क़ में मिटे कितने
आस कैसा भला किनारों से

दिल अगर रोता है तो रोने दे
कोई उम्मीद कर न यारों से

ग़म जरा दे मुझे मुहब्बत का
बिन तेरे क्या मुझे सितारों से

– ‘अश्क़’

1 Like · 284 Views
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