टूटा हुआ तारा हूँ
नसीब मुझको, मेरे घर का उजाला ना हुआ,
चलता हुआ बंजारा हूँ कहाँ जाऊँ मैं!
तुम्हें चमन की खुशबुएँ हो मुबारक,
उजड़ा हुआ दयारा हूँ, कहाँ जाऊँ मैं!
जलाए रखा तूने हमदम मुझे आतिश की तरह,
मैं जलता हुआ अंगारा हूँ, कहाँ जाऊँ मैं!
कर दिया तूने वफा को काफ़िर मेरी,
मैं ईशारों का मारा हूँ, कहाँ जाऊँ मैं!
मुझसे कैसे कहोगे अपनी मन्नत तुम,
टूटा हुआ तारा हूँ, कहाँ जाऊँ मैं!
दरख़्त से निकला तो ज़मीं नहीं पाया,
घर का मारा हूँ,कहाँ जाऊँ मैं!