टुकड़ों-टुकड़ों में बॅंटी है दोस्ती…
टुकड़ों-टुकड़ों में बॅंटी है दोस्ती…
कभी किसी को किसी से बनती,
तो किसी से किसी को नहीं बनती!
कई समूह यहाॅं-वहाॅं हैं बिखरे पड़े…
शायद वे समूह विशेष के लिए ही बने,
वे एक दूसरे से लाभान्वित होते रहते,
चाहे आप हम लाख कोशिश कर लें…
जो जहाॅं जमे हुए वे वहीं के लिए बने,
आप और हम कुछ नहीं कर सकते!!
…अजित कर्ण ✍️