टिप्पणी
टिप्पणी करना गए हम भूल ,
दिखा जब भावों का शूल ।
हमने तो परिहास किया,
सम्मुख जन को व्यंग्य शब्द कुछ खास लगा ।
चले फिर शब्दों के सहस्र वाण,
समस्त बसुधा के उड़ चले प्राण।
आहत् पीड़ित देख चित घबराया,
कहीं मेरे हीं शब्द न चोट पहुँचाया ।
मंथन करने चली सागर की ओर,
हृदय के टूटे-फूटे कण मिले चहुंओर ।
युं तो हमसब हैं अनजान,
बस मानवीयता की हीं है पहचान ।
दुख है !मन की चंचलता न रोक पाते कभी,
यह भी सच है मेरे जैसे न होते सभी ।
करबद्ध कहूँ, था नहीं वेदना आनंद मूल ,
टिप्पणी करना गए हम भूल ।
हमने यथार्थ की कही वह बात,
सम्मुख जन चक्रसुदर्शन ले पहुंचे साथ ।
आँखों ने देखा जब दिव्य वाण,
जैसे तैसे बचा चले हम अपने प्राण ।
क्रोध की ज्वाला से युक्त थे बंधु,
धरा गगन जल रहे थे धु धु।
अंतः शिव बोले मत कर अंतर द्वन्द,
होता अपनों से ही अपनों का अंत ।
भले रहे अंबर में अंधेरों का गहरा पहरा,
सूर्यकांति समक्ष तम कब रहा है ठहरा ।
समय के आगमन पर होगा अद्भुत कमाल,
प्रतिजन ले चलेंगे भाषा की क्रांति मशाल ।
स्वदेश ही होगा त्रिलोक फूल,
टिप्पणी करना गए हम भूल ।दिखा जब भावों का शूल ।
उमा झा