झोपड़ियों से बांस खींचकर कैसे मैं झंडा लहराऊँ??
झोपड़ियों से बांस खींचकर कैसे मैं झंडा लहराऊँ
पूछो झंडा कहां लगाऊं, बोलो साहब कहां लगाऊं!!
तेरी इसकी उसकी सबकी यादें सभी अधूरी है
सपने सच होने बाकी हैं रावी की शपथ न पूरी है।
अच्छे दिन के सारे सपने बिखरे हैं फुटपाथों पर
झेलम का पानी है आतुर , होने को जैसे पत्थर
कंकर कंकर में शंकर है मां नर्मदा के ख्याति से
गौ माता की चीखें आई क्यों है, इस परिपाटी से।
किस पल्लव को पुनः खिलाऊं,
किस विप्लव का दिया जलाऊं
झोपड़ियों से बांस खींचकर कैसे मैं झंडा लहराऊँ
पूछो झंडा कहां लगाऊं, बोलो साहब कहां लगाऊं!!
देखा है मैंने तो कल भी,इन भोपाली सड़कों पर
सिक्का सिक्का मांग रहे हैं भूखी आंतें हिलता कर
वस्त्र की कीमत उनसे पूछो ,जिनका छत ही है अंबर
श्वेत दुशाला ओढ़े फिरता चप्पा चप्पा में विषधर
मंत्री संत्री सत्ता लोभी संसद से जंतर मंतर
जो विपक्ष है उसको छोड़ो,प्रश्न करो प्रति पक्षों से
कहां गए हैं अच्छे दिन पूछो छपन्न के वक्षों से
नव विप्लव की आस लिया हूं कहां कहां अग्नि सुलगाऊं?
झोपड़ियों से बांस खींचकर कैसे मैं झंडा लहराऊँ
पूछो झंडा कहां लगाऊं, बोलो साहब कहां लगाऊं!!
देश लूटा दो किंतु सुन लो पुरखो को सम्मान मिले…
झोपड़ियों तक पानी पहुंचे, बच्चों को पकवान मिले
चौबीस वर्षो तक जन गण को उन्नत शिक्षा दान मिले।
वैदिक युग के भांति घर घर सत्य शांति अनुदान मिले।
अनुशासन के प्रवर क्षेत्र में संस्कार समृद्ध रहे।
सेवा से आनंदित होकर हर्षित मोहित वृद्ध रहे।
मनुस्मृति के नियमों का ,बोलो तो सब सार सुनाऊं।
झोपड़ियों से बांस खींचकर कैसे मैं झंडा लहराऊँ।
अपने अंश के अधिकारों को प्राप्त करे अनुरंजित हो
मानव मानव होवे खातिर स्वयं स्वयं अनुबंधित हो।
शांति सत्य के आयामों से यह धरती अच्छादित हो।
राष्ट्र गान का सिंधु अपने नक्शा में प्रतिपादित हो
भारत के इस पवित भूमि पर गौ हत्या प्रतिबंधित हो।
सकल विश्व के संचालन हित हिंदू राष्ट्र स्थापित हो
एक एक मिल ग्यारह होंगे तुम आओ तो गले लगाऊं
अपने दिल में दिया जलाऊं,सूरज पर झंडा लहराऊं।
©®दीपक झा “रुद्रा”