झूठ और सच
लगे हैं दस बीस आदमी चमचागिरी में,
और सच खड़ा है बिल्कुल आखिरी में,
झूठ दहाड़ता है शेर की तरह,
सच दुबक गया है नौकरी में,
दो चार हैं जो बोलते हुये सकपकाते हैं,
पेट की आग में जलते हुये बुझ जाते हैं,
झूठ लगा हुआ धोखाधड़ी में,
सच तो बन्द हुआ कोठरी में,
झूठ दहाड़ता है शेर की तरह,
सच दुबक गया है नौकरी में,
सैकड़ों लाखों बोलते नहीं गिरे तलवे में,
धज्जियां उड़ाते बहुत रहते हैं जलवे में,
झूठ लगा हमेशा चौकड़ी में,
सच की हालत दो कौड़ी में,
झूठ दहाड़ता है शेर की तरह,
सच दुबक गया है नौकरी में,