झूठी शम्मा यार जलाने से अच्छा ।
ग़ज़ल
खट्टा हो व्यवहार जमाने से अच्छा ।
अपना यूँ क़िरदार छिपाने से अच्छा ।
जलता है परवाना तो जल जाने दो ,
झूठी शम्मा यार जलाने से अच्छा ।
झाँक गिरेवां ख़ुद का तुम भी तो देखो
गैरों को गद्दार बताने से अच्छा ।
यार मुनासिब हो तो मुझसे दूर रहो,
झूठा -मूठा प्यार जताने से अच्छा ।
आप बताओ अपनी अच्छाई मुझको,
झूठा बरखुर्दार बनाने से अच्छा ।
ग़म हो तो कोने में जाकर रो लो ख़ूब ,
ये झूठी मुस्कान दिखाने से अच्छा ।
आओ रकमिश बैठो कोई ख़्वाब बुनें,
यूँ गलफ़त में उम्र गवांने से अच्छा ।
रकमिश सुल्तानपुरी