झूठा सपना
कविता
शीर्षक – झूठा सपना
अरवो की दौलत
कई एकड जमीन
और मेरे घर का
आलीशान तखत
कब का दूर हो गया है l
मेरा झूठा सपना चूर हो गया है ll…..
मुझे चाहने वाली मेरी स्त्री
मेरी परझाई मेरी औलाद
मेरे भाई, मेरी बहन
और ये रिश्तो का ताना बाना
आज मजबूर हो गया है l
मेरा झूठा सपना चूर हो गया है ll….
जब ढकेला गया मुझे
महल से तबेले में
तो अगुवाई
मेरी किस्मत ने की
शायद मेरा करम ही नासूर हो गया है l
मेरा झूठा सपना चूर हो गया है ll..
आज मेरे लिए कफन, ताबूत
और दो गज जमीन का टुकड़ा भी नहीं
हे l कुदरत, कुछ रहम कर
और समेट ले मुझे अपने में
क्या तेरा भी दिल बमूर हो गया है l
मेरा झूठा सपना चूर हो गया है ll
हँस रही है कुदरत आज
खिलखिला कर
और कह रही तूने मुझे जाना कहाँ
मै तेरी दोस्त थी पहचाना कहाँ
अब क्या तेरा अहम दूर हो गया है l
आज झूठा सपना चूर हो गया है ll……
राघव दुवे…..