Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
31 May 2023 · 3 min read

झूठा आरोप।

उनके सीने मे भी कुछ दबे से राज हैं ।
उसको पूछना चाहा,तो न जाने उन्हे कैसा ऐतराज है ।
कोई तो जरूर है जो उन्हे भङका रहे हैं ।
किसी ने तो आग लगाई ही है ।
नही तो ये धुआँ फिर कहां से आ रहे हैं ।
ये क्रोध वैसे ही आते नही है ।
बुद्धि भले ही क्रोध मे क्षीण हो जाती है ।
पर कुछ करने की रेखाएं उत्कीर्ण हो जाती है ।
क्रोध मे उठाया गया कदम बुरा हैं या भला हैं ।
या फिर कोई बला है ।
रूका कोई कब हैं ।
जब वो अपनी धुन मे चला है ।
शांति से बाते बहुत हो चुकी है ।
अब तो ये निर्णय की घड़ी हैं ।
बात अपने इज्जत पर आन पड़ी है ।
अब बताओ तुम्ही हमको यह भी।
चरित्र से अब क्या चीज बङी है ।
अब दूध-दूध का होगा पानी का पानी ।
कौन है झूठा कौन सच्चे का शानी।
पहले तो मैं कुछ बोलता नही हूं ।
पर बोलता हूँ जब तो ।
फिर किसी की सुनता नही हूं ।
झूठे आरोपो का खंजर न घोपो ।
जो भी कहना है साफ-साफ कहो न ।
घबराहट-सी चेहरे पर क्यूं दिख रही है ।
जब कुछ भी तुम किए ही नही ।
तो सहमे से रहकर ऐसे डरोना ।
कोहरा हो कितना भी घना ।
सूर्य के सामने न हैं वह कभी टिका ।
झिक -झिक सुनने की आदत नही है ।
जो भी कहना है, मुख पे कहो तुम।
होगी सच्चाई गर तो समर्थन करता हूं ।
अफवाहो के सारे पिण्ड छुङा दूं ।
हवाओ के साथ-साथ कभी-कभी धूल और तृण भी है उङते ।
मतलब इसका यह न हुआ कि।
धूल और तृणो के भी पंख निकल गए हो ।
वो किसी लड़की से गर बात कर रहा है।
जरूरी नही वह उसकी प्रियतमा ही हो।
बहन-भाभी या अन्य कोई रिश्ते मे हो सकती है ।
पर ये घटिया सोच ।
क्या-क्या सोचती है ।
नजरिए को बदलो ।
नजारा बदलेगा ।
आसमान का सितारा ।
क्या खूब चमकेगा ।
लोगो का घर-द्वार चहकेगा ।
जीवन की बगिया मे खुशियो का फूल महकेगा ।
प्रेम से ही लोगो ने दिल को हैं जीता ।
चाहे हो अंगुलीमाल डाकू या अप्सरा तिलोत्तमा ।
क्रोध ही सब कलह की जननी है।
इसी से छल,अपराध,नृशंसता पला है ।
इतिहास है इसका गवाह हमेशा ।
गर सूर्योदय हुआ तो फिर वह ढला है ।
वो अपने ही आग मे जलकर मरा है ।
यदि रत्ती भर भी कलंक लगेगा ।
चरित्र का ये दाग,ये विश्वासघात ।
दुनिया के किसी भी सरफेक्सल से न छूटेगा ।
मां सीता की भी अग्नि परीक्षा हुई थी ।
धरती फट इसकी साक्षी बनी थी।
समा गई मां सीता धरती के अंदर।
ये दुनिया की निंदा, चुगली का समंदर ।
बङा विस्तृत है इसका अम्बर ।
सीता मां भी कभी इसका शिकार हुई थी ।
रामजी के क्रोध मे तिरस्कृत हुई थी ।
पश्चाताप करने से फिर हो भी तो क्या हो ।
जब आग ही जलकर राख हो गई हो ।

Language: Hindi
245 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
कैसे कहें घनघोर तम है
कैसे कहें घनघोर तम है
Suryakant Dwivedi
🙏 गुरु चरणों की धूल🙏
🙏 गुरु चरणों की धूल🙏
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
तू सुन ले मेरे दिल की पुकार को
तू सुन ले मेरे दिल की पुकार को
gurudeenverma198
कविता (आओ तुम )
कविता (आओ तुम )
Sangeeta Beniwal
इश्क के चादर में इतना न लपेटिये कि तन्हाई में डूब जाएँ,
इश्क के चादर में इतना न लपेटिये कि तन्हाई में डूब जाएँ,
Chaahat
जन्म-जन्म का साथ.....
जन्म-जन्म का साथ.....
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
तुझसे लिपटी बेड़ियां
तुझसे लिपटी बेड़ियां
Sonam Puneet Dubey
सज्जन से नादान भी, मिलकर बने महान।
सज्जन से नादान भी, मिलकर बने महान।
आर.एस. 'प्रीतम'
हमने दीवारों को शीशे में हिलते देखा है
हमने दीवारों को शीशे में हिलते देखा है
कवि दीपक बवेजा
अनपढ़ व्यक्ति से ज़्यादा पढ़ा लिखा व्यक्ति जातिवाद करता है आ
अनपढ़ व्यक्ति से ज़्यादा पढ़ा लिखा व्यक्ति जातिवाद करता है आ
Anand Kumar
गजल
गजल
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
सरस्वती वंदना
सरस्वती वंदना
MEENU SHARMA
मात गे हे डोकरा...
मात गे हे डोकरा...
TAMANNA BILASPURI
गांव जीवन का मूल आधार
गांव जीवन का मूल आधार
Vivek Sharma Visha
पिताश्री
पिताश्री
Bodhisatva kastooriya
*भिन्नात्मक उत्कर्ष*
*भिन्नात्मक उत्कर्ष*
DR ARUN KUMAR SHASTRI
" लिहाज "
Dr. Kishan tandon kranti
4293.💐 *पूर्णिका* 💐
4293.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
शांत सा जीवन
शांत सा जीवन
Dr fauzia Naseem shad
ये ढलती शाम है जो, रुमानी और होगी।
ये ढलती शाम है जो, रुमानी और होगी।
सत्य कुमार प्रेमी
तुम्हीं मेरा रस्ता
तुम्हीं मेरा रस्ता
Monika Arora
कर्मों से ही होती है पहचान इंसान की,
कर्मों से ही होती है पहचान इंसान की,
शेखर सिंह
"समय का भरोसा नहीं है इसलिए जब तक जिंदगी है तब तक उदारता, वि
डॉ कुलदीपसिंह सिसोदिया कुंदन
ख़ुद को
ख़ुद को "फ़ॉलो" कराने के शौकीन असंख्य "फेसबुकी (नर-मादा)सो-कॉल
*प्रणय प्रभात*
रोजगार मिलता नहीं,
रोजगार मिलता नहीं,
sushil sarna
मैं जैसा हूँ लोग मुझे वैसा रहने नहीं देते
मैं जैसा हूँ लोग मुझे वैसा रहने नहीं देते
VINOD CHAUHAN
नारी कहने को देवी है, मगर सम्मान कहाँ है,
नारी कहने को देवी है, मगर सम्मान कहाँ है,
पूर्वार्थ
*कवि बनूँ या रहूँ गवैया*
*कवि बनूँ या रहूँ गवैया*
Mukta Rashmi
गुलाम
गुलाम
Punam Pande
हृदय को भी पीड़ा न पहुंचे किसी के
हृदय को भी पीड़ा न पहुंचे किसी के
इंजी. संजय श्रीवास्तव
Loading...