झील सी इन आँखो
झील सी इन आँखो में, कितने अनगिनत ख़्वाब पलते है।
होठों से बयाँ होती हुई ,ये हल्की हंसी के पीछे कितने राज छुपे होते है।
बंदिशों की ये बेड़ियाँ तुम्हे बेपरवाह बनाती है।
और बिखरे हुए बालों पर,ये उड़ती हुई लट कितना सताती है।
जब भी गुजरता हूँ गली से तुम्हारी,अक्सर ठहर सा जाता हूँ।
देख तुम्हारी झील सी आंखों में ,मैं हर बार डूब जाता हूँ ।