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19 Jan 2022 · 1 min read

झंडे गाड़ते हैं हम

झंडे गाड़ते हैं हम
**************
आइए!
हर्ष की बेला में हम भी
कुछ नया गुल खिलाते हैं,
तरुण काव्य कला से
मधुर रिश्ता बनाते है,
नये मंच से जुड़कर
नया धमाल मचाते हैं,
क्या करें आदत से मजबूर ही नहीं
बहुत बदनाम भी हैं,
घुसपैठिए नं. एक हैं हम
क्योंकि हर कहीं अपनी टाँग
घुसाने के जुगाड़ मेंं रहते हैं हम।
लालच से मेरी राल टपकती रहती है,
मौका मिला है तो सोचा
चलो अनजबी से एक
रिश्ता बनाते हैं हम,
तरुण काव्य कला को
आगे बढ़ाते हैं हम,
भूपी के संग मिल हम सब
साहित्य में अपने झंडे गाड़ते हैं हम।

?सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.
8115285921
©मौलिक, स्वरचित

Language: Hindi
204 Views

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