ज्योत्सना
***ज्योत्स्ना ***
नभ में चमकी सुंदर गोलाई
संग प्रखर ज्योत्सना आई
टिमटिमाते सहस्त्रों तारे
गगन के आंचल छिपते सारे
श्वेत धवल आभा जगमगाई
चंद्रिका शशि मिलन को आई
मिलन ये आज ही पूर्ण हुआ
स्वरूप सुंदर संपूर्ण हुआ
रंग उज्जवल सैकड़ो बिखरे
पीले, श्वेत, प्रतिक्षण बदले
विधु की ये रुचिर कलायें
मनमोहिनी सा रूप दिखाये
पवन कुछ शीतल सी बन बिखरी
नियति तब प्रफुल्लित हो ठहरी
चंदा का रूप दिव्य सुहावना
इठलाती सी इक नवयौवना
सितारों की ओढ़े चुनरिया
पीयूष की थामे गगरिया
उज्जवला,चंचला सी रूपसी
नुपूर छनकाती धरा उतरी
✍️”कविता चौहान”
स्वरचित एवं मौलिक