“ज्यादा हो गया”
वो रोज़ – रोज़ करते, ज़रा – ज़रा ही बेवफाई,
एक रोज़ हमने कर लिया तो ज्यादा हो गया।
उनका दिन शुरू मयखाने से, मयखाने पर ही ख़त्म,
एक ज़ाम हमने पी लिया तो ज्यादा हो गया।
ताउम्र वो जीतें है अपनी ही मर्ज़ी से,
एक पल हमने जी लिया तो ज्यादा हो गया।
वो मर्द ज़ात है, उनकी बराबरी नहीं करते।
गलती से जो कर लिया तो ज्यादा हो गया ।।
ओसमणी साहू ‘ओश’ रायपुर (छत्तीसगढ़)