“ज्ञ ” से ज्ञानी हम बन जाते हैं
“ज्ञ ” से ज्ञानी हम बन जाते हैं
“अ ” जब आरंभ करते हैं
स्वर भी सीखते हैं
व्यंजन भी सीखते हैं
पंचमाक्षर पढ़ -पढ़कर
ज्ञान -सरोवर में नहा- नहाकर
सारेगामा का सुर गाते हैं।
“ह” पहले आता है ज्ञ से
हल करना होता सारा हिसाब
जीवन की सारी समस्याएं
जीवन का सारा गणित
“त्र ” से त्रान तभी मिलता है
“क्ष ” क्षण – क्षण उभरती बाधाओं से/
परीक्षाओं में उत्तरीन होना होता है
सफल होना होता है
और तब जो संज्ञा मिलती है
आसमान की ऊंचाई छूता है ।
वीणा- धारणी वीणा बजाती है
सप्तक तारों को बांध -बांधकर
मृदुल संगीत सुनाती है
हमें रिझाती है
हमें बुलाती है
अपने पास बुलाकर
हमे पढ़ाती है
हमे दिखाती है सदमार्ग
हमे सिखाती है सन्मार्ग
उनके निकट बैठा हंस
नीर -क्षीर करने की ऊर्जा पाता है
विद्या देकर हमें विद्वान बनाती है
हमें प्रज्ञान बनाती है।
प्रकृति जब पीत -वसना होती है
खेतों में सरसों लहलहाती है
माघ शुक्ल पंचमी दिन/
बसंत -पंचमी के दिन
धवल वस्त्र पहनकर धरती पर आती है
जीवन को सरस बनाती है
“सरस्वती ” कहलाती है
सद्ज्ञान सद्बुद्धि भर देती है
राग -अनुराग से भर देती है
“र ” से रिश्ते बनाती है
जब हम उन्हें मां कहते है
हमें वे पूत समझती है।
वर दो ! भर दो ! मेरे जीवन को
उल्लास से ,उमंग से , आशा से
वर दो ! ज्ञानदे हे मां शारदे!
जो सीखा है, सिखाऊं औरों को
शिक्षार्थ जाऊं विद्यालय तो
सेवार्थ आऊं राष्ट्र को
भले ही नाम मेरा सिद्धार्थ हो
बुद्ध बनकर दुखिया के दुख मिटाऊं
युद्ध नहीं, शांति फैलाऊं ।
*********************************
@मौलिक रचना – घनश्याम पोद्दार
मुंगेर