ज्ञान चक्षु
ज्ञान चक्षु
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ब्रम्हापुत्र अहां छी जग केऽ ,
ज्ञानचक्षु किए मंद पड़ल अइ ।
जीवन दरसन मद्धिम भऽ गेल ,
मन में किए अंतर्द्वंद्व भरल अइ।
नेत्र तेऽ खोलु अप्पन तेसर ,
वेद पुराण सभ बंद पड़ल अइ ।
राम नाम रामायण गाथा ,
बस साहित्य के पात्र बनल अइ।
तर्क कुतर्क में अहां पड़ि गेलहुँ ,
धरति चानक मुस्कान कहाँ अइ।
आदिशंकराचार्य जे ध्यान लगौने ,
अद्वैतदर्शन किए अनभिज्ञ बनल अइ ।
धन्य अयाचीक मिथिला छल जे ,
याचक बनि आब ताकि रहल अइ।
सरिसव पाहि चमैनक पोखरि ,
धैर्य प्रतिज्ञा के प्रमाण बनल अइ ।
मिथिला विभूति केऽ त्याग तपस्या,
जग में किए अंजान बनल अइ।
ज्ञानचक्षु खोलु ने अप्पन ,
युगसंधि के बेला आएल अइ ।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – २९ /०१ / २०२२
माघ, कृष्ण पक्ष , , शनिवार
विक्रम संवत २०७८
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