ज्ञान की ज्योति जलाओ
अवगुणों से भरी इस अंधेरी गुफा में
ज्ञान की ज्योति जलाओ कभी
हर शै में हो, ये तो कहते हैं सभी
इक़ पल मुझे भी दरस दिखाओ कभी
हाथ थाम बचा लेते हो, हर बार गिरने से
सही-राह पर खींचकर ले जाओ कभी
चेतन-अचेतन बन के साथ हो हर वक़्त
इन नैनों में छवि बन समाओ कभी
सूक्ष्म देखने का गुण तो है नहीं मुझमें
भौतिक आँखों को भी नज़र आओ कभी
मित्र-सखा जब तुम सा हो, तो उदासी क्यों
शरण में बिठाकर आनन्द दिलाओ कभी
तुझ बिन अधूरे न चले जायें इस जहाँ से
दीपाली को दीपाली से मिलाओ कभी
— दीपाली कालरा