जो शिक्षक कह नहीं सकता
गुरु दिवस पर कविता
तुम्हारे मंदिरों से मस्जिदों से हमको लेना क्या,
न बताओ हमको तुम ऐसे खुदा और राम का झगड़ा,
कहीं ऐसा न हो पड़ जाएँ मेरे कंठ मे छालें,
कहने को कहो मत वो जो शिक्षक कह नहीं सकता…
जो शिक्षक कह नहीं सकता।
न पैसा है न बंगला है न बातों का है आडंबर,
जहां मिल जाएंगे प्यासे बनाऊँगा वहीं पर घर,
किसी के भी झुकाने से कहीं ये सर नहीं झुकता,
कहने को कहो मत वो जो शिक्षक कह नहीं सकता…
जो शिक्षक कह नहीं सकता।
मुझे तुम क्या बताते हो की कीमत है मेरी कितनी,
कभी फिर आजमाते हो की नियत है मेरी कितनी,
मेरे किरदार पर महंगा कोई कपड़ा नहीं फबता,
कहने को कहो मत वो जो शिक्षक कह नहीं सकता…
जो शिक्षक कह नहीं सकता।
Written by :-
कोमल अग्रवाल