जो बीत गए वो दिन भी अच्छे थे!
जो बीत गए वो दिन भी अच्छे थे
जो साथ रहे वो दोस्त भी सच्चे थे !
न पैसों का फिक्र, न समय का खयाल था
न भविष्य का ज़िक्र, न बातों का मलाल था!
जब जैसा होता वैसा कह देते थे
मतभेदों को भी हंस कर सह लेते थे !
कभी मज़ाक बन जाते, कभी बना भी देते थे
रोते रोते इक दूजे को हंसा भी देते थे !
बचपन का वो भोलापन, लड़कपन से जवानी
कोलेज की वो मोहब्बत और आँखो मे पानी !
सपनो की वो दौड़, उम्मीदों की रवानी
हर दिन गढ़ते थे कोई नई कहानी!
मोबाइल का दौर नहीं चिट्ठियों का काल था
दूरियाँ थीं बहुत, दिलों मे सबका खयाल था!
मजहबी ताना बाना भी क्या खूब था
आपसी रिश्तों का ऐसा गठजोड़ था!
न हिंदू थे न मुसलमान थे
आँखों मे एक दूसरे की बस इंसान थे !
जो बीत गए वो दिन भी अच्छे थे
जो साथ रहे वो दोस्त भी सच्चे थे !