जो थे क्रिमिनल…, देख परिंदे,
जो थे क्रिमिनल…, देख परिंदे,
अब सब सोशल देख परिंदे..!
बच्चों से अब.., मार – पिटाई,
कितना क्रिटिकल देख परिंदे।
कम्पास में’ ढीली पेंसिल.. तो,
गड़बड़ एंगल…, देख परिंदे..!
घूम रहे जो…, बस्ती – बस्ती,
नेता राॅयल…., देख परिंदे…!
बम विस्फोट किए जिसने भी,
उनको नोबल.., देख परिंदे..!
अंधा दौड़ रहा…, बिन लाठी,
नक्शा गूगल…, देख परिंदे..!
लुप्त हुआ…, नोटों से भारत,
इंडिया डिजिटल देख परिंदे.!
पंकज शर्मा “परिंदा”