जो जलता है जलने दीजिए
****** कैसे हो जाते हैं अमीर *****
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गरीबों की लड़ाई लड़ने वाले फकीर,
लड़ते – लड़ते कैसे हो जाते हैं अमीर|
मुंह में राम बगल में रखते हैं वो छूरी,
माया के लोभ में मर जाता है जमीर|
रक्त चूस गरीब का बने महल अटारी,
लाल लहू में मिलाकर खाते हैं पनीर|
हक हाथों में नहींं जिसके हैं हकदार,
गरीबी के कोप में नैनों से बहता नीर|
दर-दर ठोकर खा रहे बनकर अधीर,
भूख-प्यास बदहाल में विकल शरीर|
प्रलोभन है दे रहे मंच पर हो आसीन,
अनुशयी मन की कोई न समझे पीर|
मनसीरत किस से कहे पीड़ित हाल,
माल पखेरु ले गये बची शीत समीर|
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)