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13 May 2020 · 1 min read

जो गए थे परदेश कमाने…

जो गए थे परदेश कमाने, गवाँ के लौट रहे हैं,
अपने अरमानों का दरिया, खुलेआम बहाकर लौट रहे हैं ।

ख़ून-पसीने से जो कमाया, लुटाकर लौट रहे हैं,
अमीरों की गलतियों से, आँसू बहाकर लौट रहे है ।

हुई है बेज़ार ज़िंदगी, उसे सँभाल कर लौट रहे है,
अब इस देश में रहना नहीं, प्रण लेकर लौट रहे हैं ।

दाना-दाना जोड़कर, रोटियाँ बनाकर लौट रहे हैं,
“आघात” दफ़न हुए हादसों में, ज़िंदगी को फ़नाकर लौट रहे हैं ।

Language: Hindi
4 Likes · 2 Comments · 339 Views
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