जो अबकी आ जाते साथी (गीत)
जो अबकी आ जाते साथी
झूम-झूम हम गाते साथी
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बहती गीतों की स्वर लहरी
ना होती तब रातें गहरीं ,
बगिया में नव कोंपल आते
मधुबन में सब गीत सुनाते
रेतों में हरियाली खातिर
नैनन नीर बहाते साथी |
जो अबकी………..साथी ||
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एक दूजे का करूण कहानी
कह देता आँखों का पानी ,
फागुन में हम रास रचाते
चैत मास में फाग सुनाते ,
सावन सी रिमझिम वर्षा से
मन की आग बुझाते साथी |
जो अबकी………..साथी ||
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खेतों में सरसों खिल जाता
भ्रमर मिलन का राग सुनाता ,
अपने मन के उद्गारों से
अरु स्वाती की बौछारों से,
नीरवता में दोनों मिलकर
मन की प्यास बुझाते साथी |
जो अबकी………..साथी ||
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जब पछुआ के झोंके आते
मंजरियों के महक लुभाते ,
मस्त पवन जब गीत सुनाता
तपिस ह्रदय का भी मिट जाता,
जीवन में उजियाला भरकर
उपवन को महकाते साथी |
जो अबकी………..साथी ||
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रचना:- संतोष कुमार श्रीवास्तव ‘तनहा’
कुशीनगर
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