“जोडूँ कैसे”
खुले घूमते दर्द ये मेरे ,
फ़िर भी दिखते नहीं किसी को ,
छू-छूकर के और टटोलें ,
निर्मम हँसी, ये घायल मन को,
चीथडे-चीथडे हुए सभी ,
कागज़ से ये अवगुन्ठन,
तिनका-तिनका जोडू कैसे,
दर्द ढकूं मैं बिना वसन,
खुले बहते निर्झर मेरे ,
फ़िर भी भिगोते नहीं किसी को ,
रह -रहकर देते और हिलोरें,
प्यासे -प्यासे गीले तन को ,
भीगे -भीगे हुए सभी ,
मिट्टी से ये अन्तस,
तार -तार जोडू कैसे,
निर्झर पोछू मैं बिना वसन||
…निधि…