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29 Sep 2019 · 1 min read

” जोखिम भरी ज़िन्दगी “

जीवन की विडंबना है यही, ये बडती ही चलेगी,
बढोगे जितना प्रयास कर, सफल करती चलेगी ||

रुक जाओगे थककर, तो सिलसिला थम चलेगा,
साँसे भर गर धक्का लगा दिये तो गाडी बडती चलेगी ||

जाने कितने मुसाफ़िर आये और लौटकर मुड चले ,
इतिहास तो वो बनाये जो जोखिमों को गले लगाते चले ||

कद्र और तारीफ़ तो केवल असरदार की होगी,
यूं ही सफर सुहाना समझने वालों को मुनासिब न होगी ||

दौड़ है तो दौड़ दौड़कर ही पूरी करनी पड़ेगी,
तासीर गर चाह है तो मुफलिसी सहनी पड़ेगी ||

तासीर**इज्ज़त, सम्मान
मुफलिसी**तकलीफ, परेशानी,

—-अशोक डंगवाल “आशु “

3 Likes · 1 Comment · 328 Views
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