जै हनुमान
मत्तगयंद सवैया —
गणावली –7 भगण+ गग
अंकावली –211-211-211-211-211-211-211-22
पदांत –$$
सृजन शब्द — मंगल —
प्रत्येक पंक्ति में सम तुकांत अनिवार्य —
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जै हनुमान सदा सुखदायक हे गुणवान सुजान पधारो।
मंगल मूरति संकट मोचन नाथ दया कर काज सँवारो।।
बुद्धि निधान गुणी बल आगर राम लला निज भक्त उबारो।
पिंगल नैन रमो अँजनी सुत द्वार पड़ी निज दास निहारो।।
मारुति नंदन हे दुखभंजन अर्ज सुनो अब दीन दयाला।
पुष्प सजे दरबार निरामय मोदक भोग लगें प्रभु बाला।।
मंगल की महिमा अति पावन संतन मानस भाव निहाला।
शीश झुकें दरबार सदा जग भारत में सबसे दर आला।।
जै जग पालन राम सुहावन पीर हरो सबके रख वाले।
शीतल चंदन प्रीत सुहागन तोड़ चलो मद के भव ताले।।
जै अँजनी सुत दो पद पंकज मानस मंगल धूलि रमाले।।
मोहक प्रीतम दो रसिया वर राम सिया रस पी उर प्याले।
✍️ सीमा गर्ग मंजरी
मौलिक सृजन
मेरठ कैंट उत्तर प्रदेश
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