Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
9 May 2024 · 1 min read

छूट रहा है।

जैसे-जैसे हाथों से हाथ छूट रहा,
दिल भी टुकड़ों में जैसे टूट रहा,
गमों का सैलाब जो था थमा,
वो आंखों से रह रहकर फूट रहा !

किस्सों से सजा था बसेरा हमारा,
जो तुम न हो तो सब बिखर रहा,
हमारी यादों का हुजूम उमड़कर,
मेरे दरम्यान जैसे सब ठहर रहा !

क्या ऐसा होना ही लिखा था,
दिल ये मेरा बार – बार पूछ रहा,
जैसे-जैसे हाथों से हाथ छूट रहा,
दिल भी टुकड़ों में जैसे टूट रहा !

© अभिषेक पाण्डेय अभि

8 Likes · 80 Views

You may also like these posts

आज यूँ ही कुछ सादगी लिख रही हूँ,
आज यूँ ही कुछ सादगी लिख रही हूँ,
Swara Kumari arya
मेरे भीतर मेरा क्या है
मेरे भीतर मेरा क्या है
श्रीकृष्ण शुक्ल
कविता की धरती
कविता की धरती
आशा शैली
प्रेम बसा कण कण में
प्रेम बसा कण कण में
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
प्रेम अंधा होता है मां बाप नहीं
प्रेम अंधा होता है मां बाप नहीं
Manoj Mahato
जीवन में उन सपनों का कोई महत्व नहीं,
जीवन में उन सपनों का कोई महत्व नहीं,
Shubham Pandey (S P)
"ज्ञान-दीप"
Dr. Kishan tandon kranti
​दग़ा भी उसने
​दग़ा भी उसने
Atul "Krishn"
प्यारी बहना जन्मदिन की बधाई
प्यारी बहना जन्मदिन की बधाई
Akshay patel
स्वतंत्रता
स्वतंत्रता
Seema gupta,Alwar
मेरी …….
मेरी …….
Sangeeta Beniwal
इश्क के चादर में इतना न लपेटिये कि तन्हाई में डूब जाएँ,
इश्क के चादर में इतना न लपेटिये कि तन्हाई में डूब जाएँ,
Chaahat
फिदरत
फिदरत
Swami Ganganiya
गुत्थियों का हल आसान नही .....
गुत्थियों का हल आसान नही .....
Rohit yadav
किस क़दर
किस क़दर
हिमांशु Kulshrestha
शैतान मन
शैतान मन
Rambali Mishra
27-28 साल की बिन ब्याही लड़कियाँ और बेरोज़गार लड़के, धरती पर
27-28 साल की बिन ब्याही लड़कियाँ और बेरोज़गार लड़के, धरती पर
पूर्वार्थ
किराये का घर
किराये का घर
Kaviraag
अनैतिकता से कौन बचाये
अनैतिकता से कौन बचाये
Pratibha Pandey
घनाक्षरी
घनाक्षरी
seema sharma
निकलती हैं तदबीरें
निकलती हैं तदबीरें
Dr fauzia Naseem shad
परदेसी की  याद  में, प्रीति निहारे द्वार ।
परदेसी की याद में, प्रीति निहारे द्वार ।
sushil sarna
देशभक्ति(मुक्तक)
देशभक्ति(मुक्तक)
Dr Archana Gupta
काश - दीपक नील पदम्
काश - दीपक नील पदम्
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
तेवरी : व्यवस्था की रीढ़ पर प्रहार +ओमप्रकाश गुप्त ‘मधुर’
तेवरी : व्यवस्था की रीढ़ पर प्रहार +ओमप्रकाश गुप्त ‘मधुर’
कवि रमेशराज
गर हो जाते कभी किसी घटना के शिकार,
गर हो जाते कभी किसी घटना के शिकार,
Ajit Kumar "Karn"
"एक ख्वाब टुटा था"
Lohit Tamta
संवेदनाएं
संवेदनाएं
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
🙅आज का मुक्तक🙅
🙅आज का मुक्तक🙅
*प्रणय*
दुखवा हजारो
दुखवा हजारो
आकाश महेशपुरी
Loading...