छूट रहा है।
जैसे-जैसे हाथों से हाथ छूट रहा,
दिल भी टुकड़ों में जैसे टूट रहा,
गमों का सैलाब जो था थमा,
वो आंखों से रह रहकर फूट रहा !
किस्सों से सजा था बसेरा हमारा,
जो तुम न हो तो सब बिखर रहा,
हमारी यादों का हुजूम उमड़कर,
मेरे दरम्यान जैसे सब ठहर रहा !
क्या ऐसा होना ही लिखा था,
दिल ये मेरा बार – बार पूछ रहा,
जैसे-जैसे हाथों से हाथ छूट रहा,
दिल भी टुकड़ों में जैसे टूट रहा !
© अभिषेक पाण्डेय अभि