जैसी भी वैसी ही बनी रहना।
क्या लिखूं ,
कैसे लिखूं,
शब्द कहते हैं,
हममें सामर्थ्य नहीं,
उपमाएं कहती हैं,
हम में उपयुक्तता नहीं,
धरती कहती है ,
मुझमें इतना धैर्य नहीं,
हवाएं कहती हैं,
हममे इतनी चंचलता नहीं,
चंद्रमा कहता है,
मुझमें इतनी शीतलता नहीं,
सुरज कहता है,
मुझमें इतनी ऊष्मा नहीं,
जल कहता है,
मुझमें इतनी तरलता नहीं,
फिर क्या लिखूं,
कहाँ से लिखूं,
बस इतना ही कहूंगा,
जैसी हो ,
जैसी भी हो,
वैसी बनी रहना,
सालों साल,
हजारों साल।