जेब
इन जेबों का अलग ही किस्सा है
वो जो जेब दफ़न है
उसमे भी कई जेबों का हिस्सा है
बचपन की जेबें
छोटी हुआ करती थी
जितनी जरुरत हो
बस उतनी ही सिया करती थी
जो फट जाती थी कभी
तो निकल जाती थी
चीज़े सभी
बग़ल की जेब में जिंदगी
फिर भी जिया करती थी
आजकल हम जेबों में ही
बसते हैं
बस कभी कभार ही हसंते हैं
और जो फटती हैं जेबें कभी
उन्ही से कफ़न भी कसते हैं
फिर भी
जेबों में जेब हमारी है
हम सब को जेबों की बीमारी है
@संदीप