*जुलूस की तैयारी (छोटी कहानी)*
जुलूस की तैयारी (छोटी कहानी)
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जुलूस की तैयारी के लिए संगठन की बैठक थी। जैसा कि हर बार होता है, विचारणीय विषय यही थे कि बैंड-बाजा किन-किन लोगों का किया जाए ? जुलूस में हाथी रखा जाए या नहीं ? ऊंट की सवारी का आकर्षण बढ़ाया जाए अथवा नहीं ? झांकियां कितनी हों ? रास्ते में स्वागत के लिए जगह-जगह जलपान की व्यवस्था कैसे की जाए ?
उपरोक्त एजेंडे पर जब विचार पूरा हो गया, तब एक नौजवान ने खड़े होकर कहा कि एक सुझाव मैं भी देना चाहता हूॅं।
वरिष्ठ-जनों को अच्छा तो नहीं लगा लेकिन उन्होंने उसे बोलने की अनुमति दी। उस नवयुवक ने कहा: “अगर इस बार जुलूस में हम एक दर्जन कार्यकर्ता सड़कों पर से कूड़ा उठाने के काम में स्वैच्छिक योगदान के रूप में लगा सकें, तो बहुत अच्छा रहेगा। हर साल जुलूस निकलता है और अपने पीछे दोने, पत्ते, कागज के गिलास आदि का कूड़ा छोड़ जाता है। इस बार हमारे कार्यकर्ता सड़क साफ करते हुए चलेंगे, तो कितना अच्छा रहेगा !”
नवयुवक के प्रस्ताव को समर्थन मिलने में एक मिनट भी नहीं लगा। मीटिंग-कक्ष तालियों की गड़बड़हट से गूॅंज उठा।
कुछ दिन बाद शहर-भर की जनता ने देखा कि जुलूस के अंत में सजे-धजे कपड़े पहने एक दर्जन कार्यकर्ता सड़क से कूड़ा उठाकर कूड़े की गाड़ी में डालते हुए चल रहे थे।
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लेखक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
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