जुर्म किसका था
जुर्म किसका था, मिली किसको सज़ा रहने दो .
किसको होना था, हुआ कौन रिहा, रहने दो..
दफ़्न मुझमें हैं कई ख़्वाब अज़ल से लेकिन ,
मेरी आँखों में उमीदों का दिया रहने दो ..
ज़िन्दगी मेरी किसी और के हिस्से की थी .
किसके हाथों से मिली मुझको क़ज़ा रहने दो..
खो न जाऊँ मैं कहीं भीड़ भरी दुनिया में.
मेरा चेहरा है मेरा, इसको मेरा रहने दो ..
दौर ए ग़र्दिश में मेरे दिल को तसल्ली मिलती..
उसकी चौखट पे मेरा सर ये झुका रहने दो..
जिस्म मिट्टी का लिए मैं हूँ पड़ा दरिया में ..
मेरे होंठों पे मगर हर्फ़ ए दुआ रहने दो..
मैंने रक्खी ही कहाँ आस वफ़ा की इससे,
मुझसे दुनिया ये ख़फ़ा है तो ख़फ़ा रहने दो..
आबले पाँवों में चेहरे पे शिकन भी लेकिन.
मेरी धड़कन में ” नज़र” नामे ख़ुदा रहने दो..
Nazar Dwivedi