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7 Dec 2016 · 1 min read

जुबाँ पर जो है दिल में वह नाम लिखती हूँ

जुबां पर जो है दिल में वह नाम लिखती हूं
हो जाए मैहर जिंदगी तमाम लिखती हूं

निकलते है मेरे दिल से ही जज़्बात सभी
मैं जब भी कोई अछूता कलाम लिखती हूँ”

सज गई महफिल हे आज सितारों की यहाँ
गुजर न जाये ये रात तेरे नाम लिखती हूँ

हो गया जुर्म हैं मुझसे मुहब्बत करने का
चलो अब अपने ही नाम इल्जाम लिखती हूँ

पिरोकर लफ़जो को मै माला बनाती हूँ
मिले न मिले दाद मगर कलाम लिखती हूँ

है आसान डगर झूठ की मगर क्या करें
मुलाजिम हूँ सच की सरेआम लिखती हूँ

उनको देनी है खुशियाँ कँवल उम्र भर
हर खुशी अपनी उन्हीं के नाम लिखती हूँ

। बबीता अग्रवाल कँवल

1 Like · 373 Views
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