जी चाहता है .. (ग़ज़ल)
गुमनामी के अंधेरों से निकलकर उजालों में आने का ,
बड़ा जी चाहता है हमारा भी बहुत मशहूर होने का .
कब से गहरी खाई में पड़े हैं,सदायें दिए जा रहे हैं ,
कोई तो आये ,रास्ता बताये हमें बाहर निकलने का.
अभी तक तो तारुफ्फ़ के मोहताज रहे हैं,औ कब तक?,
ख्वाईश है हमारी ,हमारा नाम ना हो मोहताज तारुफ्फ़ का .
हमारा भी शुमार हो कुछ ख़ास हस्तियों के नाम के साथ,
सारे शहर में चर्चा हो हमारे फन -ओ-अदब ,शख्सियत का .
दुनिया भर में मशहूर हो हमारे नगमें ,ग़ज़लें और शायरी ,
हर एक शख्स दीवाना हो ,शदाई हो हमारे कलाम का.
ऐ तकदीर ! तू हो जाय गर मेहरबान ,खुदा के वास्ते ही सही ,
हम भी मज़ा चख लें एक नमकीन कामयाब जिंदगी का .
बस ! एक छोटी सी चाहत है हमारी ,जाएदा बड़ा अरमां नहीं,
मरकर भी लोगों के दिलों में ज़िंदा रहें ,ये खवाब है इस नाचीज़ का .