जीवन
जीवन के पल दो चार,
कुछ तो हंस लेउ गुजlर!!
बाकी तो फिर रोना है,
सुबह शाम को ढोना है!!
जीवन से ना हो बेजार!
जीवन के पल दो चार!!
कभी-कभी कोई तो पूछे,
और कहो कैसे हो यार?
जीवन के पल दो चार!!
बीते दिन खेल खिलौने के!
औ सजाए स्वप्न सलौने के!!
मंजिल से अब भी बेजार!
जीवन के पल दो चार!!
बचपन,किशोर,गृहस्थ बीते!
फिर भी कुम्भ धरे है रीते!!
वानप्रस्थ मे भजन हजार!
जीवन के पल दो चार!!
सन्यास अभी भी बाकी!
न मयखाना ना साकी!!
तेरी ठठरी खडी है द्वार!
जीवन के पल दो चार!!
सर्वाधिकार सुरछित मौलिक रचना
बोधिसत्व कस्तूरिया एडवोकेट,कवि,पत्रकार
202 नीरव निकुजं फेस-2″सिकंदरा,आगरा-282007
मो:9412443093