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2 May 2024 · 1 min read

जीवन

इस जीवन का जाप अधूरा
मालाएं कैसे टूट गईं
पुण्य मार्ग पर चलते थे हम
वे राहें कैसे छूट गईं ।

प्यास बहुत थी अमर कलश की
कंठ रसीले सूख गए थे
सुधा बूंद की झलक दिखी ना
चाहत के घट फूट गए थे
मदमाती सी लिए सुगंधी
कलियां कैसे रूठ गईं।

पुण्य मार्ग पर चलते थे हम
राहें कैसे छूट गईं।

शब्द जाल सब एक हुए हैं
कहते हैं कविता बन जाए
छूकर सांसों की गर्माहट
पत्थर की छाती पिघलाएं
मन के मोती बिखरे इत उत
चुपके से आकर लूट गईं।

पुण्य मार्ग पर चलते थे हम
वे राहें कैसे छूट गईं।

~ माधुरी महाकाश

Language: Hindi
83 Views
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