जीवन है बस आँखों की पूँजी
जीवन है बस
आँखों की पूँजी
बार बार कहना क्या
लुप्त हुए भले लोक से
बार बार दिखना क्या
जीवन है राग का मेला
चलो चलो सुर सजनी
श्रृंगारी पूनम अमावस
कब देखे यह रजनी
मरने पर भी क्या मरते हैं
मन पितरों की गंगा
अदृश्य हैं, हम जमीं पर
मन मानस है चंगा।
कहाँ जाओगे, तय नहीं है
कहाँ गाओगे लय नहीं है
है जीवन की अनगिन पारी
जिसमें बस मय नहीं है।
एक जीवन खत्म होने से
जीवन नहीं मरा करता है
आना जाना बस है कश्ती
जीवन नहीं तरा करता है।।
सूर्यकांत