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12 Dec 2019 · 1 min read

जीवन ही है सृजन में मूल

जीवन ही है
सृजन में मूल
खिलते है धरा पर
इसके फूल,

हर खूशबू
तुझसे
इत्र तो
भौतिक आयोजन
तू है तो
जिंदा हंस मेरा
नीर क्षीर
मुश्किल नहीं.
तू प्राण
तू चेतना
हरदिल जवां
तू भेदभाव
कदापि करती नहीं
उज्ज्वल हर समां
बेबाक
बेपनाह
हर हरकत
भले हो बेमकसद
कर दे जो समर्पित
पूजा वही
अर्चना वही.
यही धर्म स्वभाव मूल
बाकी सब लॉबिंग.

हंस डॉ. महेन्द्र

Language: Hindi
3 Likes · 2 Comments · 221 Views
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