जीवन से भागा फिरता है
जीवन से भागा फिरता है
मौत से क्यों ऐसे डरता है
मन तेरा क्यूं भटक गया है
यूं पल-पल जीता मरता है
संकल्प तुझे ये लेना होगा
तन को कष्ट तो देना होगा
जीवन भर आराम किया है
किए बिना कहां सरता है
जीवन सफल तेरा हो जाता
मात-पिता को सुख पहुंचाता
अब तक तुने लिया लिया है
देने से अब क्यों डरता है
जीवन का आधार कर्म है
यही सिखाते सभी धर्म है
गीता में ये उपदेश दिया है
जिसको उठाए तूं फिरता है
क्यों बैठा है ज्योत जला के
माथे लम्बा तिलक लगा के
ईश्वर ने स्वस्थ बदन दिया है
‘विनोद’क्यूं पाखण्ड करता है