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27 May 2019 · 1 min read

जीवन सूखे बंजर हो गये।

जीवन सूखे बंजर हो गए,
कांटे बढकर खंजर हो गए।
चुभे हृदय में सूल,
दुख कैसे जाऊ भूल।
कही सहायक नहीं है अपने,
भूल गए आंखो के सपने ।
सब कल्पना के फूल,
दुख को कैसे जाऊँ भूल ।
पतझड छोड़ पतंगे उडते
सूखे पत्ते में कैसे रहते।
उडती है अब धूल
दुख को कैसे जाऊँ भूल ।।
#विन्ध्य प्रकाश मिश्र ‘विप्र’

Language: Hindi
2 Likes · 375 Views
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