जीवन समर !
जीवन समर !
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बहुत डर लगता है मुझे !
इतना पता था किसे ?
कि महामारी आ जाएगी !
दुनिया ये उजड़ जाएगी !!
स्थिति बहुत ही विकराल है !
पर डरने की नहीं बात है !
बस, कुछ ही दिनों की तो बात है !
फिर ये वापस चली जाएगी !
फिर से दुनिया नई बस जाएगी !!
बस, थोड़ा संभल – संभलकर !
धैर्य व हिम्मत से मुकाबला कर !
सारे नियमों का पालन कर !
औरों की भी सहायता कर !
दम लेंगे हम इसे भगाकर !
अटूट एकता का परिचय देकर !!
अपने सब्र को बाॅंध के रख !
वैक्सीन से बचाव अपनी कर !
सरकार से भी सहयोग किया कर !
अनावश्यक नहीं इसे कोसा कर !!
ये है बहुत ही विकट परिस्थिति !
किसी एक के वश की बात नहीं !
सरकार अपना काम है कर रही !
आप ना करें कभी कोई लापरवाही !
खुद भी लेनी होगी कुछ जवाबदेही !!
अति सावधानी बरतें पर डरें नहीं !
बिना सोचे-समझे कुछ करें नहीं !
डाॅक्टरी सलाह लें संशय जो हो कोई !
इलाज़ में कोई कोताही करें नहीं !!
कोई जीवन जीता है तो कोई डराता ही है !
पर क्या ज्ञानी मानव कभी इससे घबराता है ?
कोई राह चलता है तो बाधाऍं उसे रोकती ही हैं !
पर क्या असली पथिक विचलित हो रुक जाता है??
पेड़ों में पुराने पत्ते झड़ते हैं, कितने नए लग जाते हैं !
जीवन समर में न जाने कितनी कहानियाॅं बन जाते हैं !
जीवन कोई खेल नहीं, बड़े खिलाड़ी यहाॅं पिट जाते हैं !
विनती करता अजित, चल नए सिरे से बगिया सजाते हैं !!
_ स्वरचित एवं मौलिक ।
© अजित कुमार कर्ण ।
__ किशनगंज ( बिहार )
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