जीवन सत्य
भोर लालिमा किरणो के संग सूरज को उगते देखा हूँ,
बीते दिन शाम की बेला में सूरज को ढलते देखा हूँ,
जीवन के सुख दुख सूरज जैसे आयेंगे जायेंगे,
जीवन के चन्द लम्हों में अपना पराया भी देखा हूँ,
दुनिया के भँवर में मैंने जीवन की परवाह न की,
सुख में सब मेरे दुख में अपनो को बदलते देखा हूँ,
मतलब की इस दुनिया में कोई सगा नहीं अपना,
वृद्घा आई जब तन पे हो गये पराये अपनो को देखा हूँ,
क्या लाये थे जीवन में जब पकड़े खाट सोच रहे,
बेटे को किया मैं प्रेम सदा उसे नफ़रत करते देखा हूँ,
इस धरा पे जो आया हैं एक दिन उसे जाना होगा,
दुनिया में जो आया हैं जायेगा जातें मुर्दो को देखा हूँ,
धन दौलत रिश्ते नाते साथ नहीं जा पायेंगे,
शमशान में जलती चिता को आँखों से देखा हूँ,