@@ जीवन संगिनी @@
तुमको देख कर ,मुझे मुस्कुराना आ गया
जीवन में मेरे अंधकार था, उजाला आ गया
चला जा रहा था ,न जाने कौन सी डगर पर
तुमको पाकर जीवन मेरा संवरता चला गया !!
लाख कोशिश की थी, मैने अपनी राह पकडने की
पर वो धरातल न मिल सका ,जिन्दगी को मेरे
वो शायद जिन्दगी का खास ,लम्हा था मेरे लिए
जिस में तुम को मैं, पाकर सजता चला गया !!
विधि का विधान ही कुछ ऐसा था, औ मेरे सनम
एक डोर को बंधने में समां ,पास आता चला गया
हो गयी दो आत्मा ,एक दूजे के पास इस तरह
दो बिछडे हुए दिलो का समां मिलाता चला गया !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ