“जीवन में हम”
दो शरीर एक श्वांस हैं हम,
एक दूजे के खास हैं हम।
दूर भले हम कितने रह लें,
दिल के मगर अति पास हैं हम।
प्रेम-सुधा उर में भर घूमें,
राधा-कृष्ण के दास हैं हम।
निज जीवन गर मानसरोवर,
समझिये फिर आकाश हैं हम।
अगर ज़िन्दगी पार्वती तो,
शंकर के उच्छवास है हम।
इक-दूजे का बनें आसरा,
जीतें सदा विश्वास हैं हम।
तिमिर घिरा हो चाहे कितना,
रवि के जैसा प्रकाश हैं हम।
*प्रशांत शर्मा ‘सरल’,नरसिंहपुर