जीवन में संघर्ष
जीवन में संघर्ष न हो तो
जीवन जीना सारहीन है।
वीर कभी क्या बन पाएगा
जो विलास में सहज लीन है?
प्रेमपूर्वक सत्य के लिए
जा सकता है सब कुछ त्यागा।
सत्य त्याग कर उसके बदले
मिल सकता कुछ कभी न माॅंगा।।
त्याग और सेवा के बल पर
जा सकता है जग को जीता।
केवल बुद्धि वृद्धि कर मानव
मद-मत्सर की मदिरा पीता।।
कीट सदृश मर जाने से तो
बेहतर न्याय के लिए लड़ना।
बिना हुए भयभीत किसी से
अपने आदर्शों पर अड़ना।।
साहस से अभेद्य दीवारों
में भी राह निकल आती है।
अभय विचरने वाले मानव
से बाधा मुॅंह की खाती है।।
जागो, उठो, बढ़ो सत्पथ पर
भूल करो पर मत दुहराओ।
पहुॅंचे बिना लक्ष्य तक अपने
रुको नहीं, चलते ही जाओ।।
महेश चन्द्र त्रिपाठी